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and get the best of both worlds. We at Rachanakriti, believe in thinking before doing and when we decide to do it after giving it a due thought. We do it with utmost attention to detail and quality. Writing is a product of a beautiful & creative mind, but publishing is the product of an entrepreneurial and smart mind.
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Straight from our Writers' Hearts
Being a writer-centric publishing house, it's essential to know what our writers feel about us and about their respective journeys with us. This is a space where our authors share their thoughts, inspiration, and the stories behind the stories. Delve into the world of literature from a unique perspective and get to know the voices behind the words. Must witness this journey of literary discovery and connect with the hearts of our writers.
#WritersHearts #LiteraryVoices #DiscoverAuthors
Writing in Hindi first felt like a Googly! But I surprised myself, when I wrote the full article in one go, in an hour and then only went back to Google to help me translate some words. It dawned on me that my own story is waiting to be written and re-written and this is just an excerpt. ‘Yeh to shuruaat hai, aage aage dekho hota hai kya’! – Sapana Bhavsar
एक लेखक के रूप में अपनी कहानी लिखना और समाज के सामने लाना, मेरे लिए काफी मुश्किल था लेकिन “काफी हूँ मैं खुद के लिए” एक ऐसा जरिया बना कि मैं अपनी बात आप सभी से साझा कर सकी। मुझे खुद से परिचित कराने के लिए रचना जी को बहुत-बहुत शुक्रिया! रचना जी! ये तो बस एक शुरुआत है, आगे सफ़र जारी रहेगा। इक नई शुरुआत के लिए, फिर से शुक्रिया। – डॉ. वंदना
इंसान जो भी लिखता है वह या तो उसके साथ घटित होता है या फिर उसके आसपास। उन्हीं भावों को शब्दों में पिरोना और दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करना ही लेखन है। यह है मेरा सोचना है। रचनाकृति से जुड़ने का और और ‘काफी हूँ मैं’ शीर्षक पर लिखने का सौभाग्य मिला। सहजता और सुंदरता का तारतम्य जोड़ना सीखा। मैं आशा करती हूँ और शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ कि रचनाकृति आगामी वर्षों में उन्नति के परचम लहराए। – डॉ. आकांक्षा शंकर कौशिक
जैसे पहला बच्चा तुम्हें माँ बनाता है, वैसे ही पहली क़िताब तुम्हें लेखक बनाती है और जिस प्रकाशक के साथ तुम अपनी पहली क़िताब करते हो वो तुम्हारा मायका बन जाता है। रचनाकृति अब से मेरा मायका बन गया है। मैं यहाँ बिना किसी जजमेंट या पूर्वाग्रह के निखर सकती हूँ। मुझे इस बात की सहूलियत और ये वातावरण देने के लिए मैं रचनाकृति की आभारी हूँ… दिल से। – डॉ. रिंकू शाह
रचनाकृति, यह नाम ही काफ़ी है और काफ़ी हो तुम रचना, इस रचनात्मक सफर को आगे बढ़ाने के लिए और हम भी विश्वास की डोर थामे तैयार हैं, तुम्हारे कदम से कदम मिलाने के लिये। बहुत समय के बाद एक सच्चा और सटीक प्लैटफार्म मिला है मन की बात कहने के लिए। बहुत शुभकामनाएँ सफलतापूर्वक इसकी स्थापना के लिए। – शुभा सागर
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